स्वस्थ रहने की कुंजी सम्पुर्ण चिकित्सा (वागभट्ट ज्ञषि) -राजीव दिक्षित जी
भारत में जिस शास्त्र की मदद से निरोगी होकर जीवन व्यतीत करने का ज्ञान मिलता है उसे आयुर्वेद कहते है। आयुर्वेद में निरोगी होकर जीवन व्यतीत करना ही धर्म माना गया है। रोगी होकर लंबी आयु को प्राप्त करना या निरोगी होकर कम आयु को प्राप्त करना दोनों ही आयुर्वेद में मान्य नहीं है। इसलिए जो भी नागरिक अपने जीवन को निरोगी रखकर लंबी आयु चाहते हैं, उन सभी को आयुर्वेद के ज्ञान को अपने जीवन में धारण करना चाहिए। निरोगी जीवन के बिना किसी को भी धन की प्राप्ति, सख की प्राप्ति, धर्म की प्राप्ति नहीं हो सकती हैं। रोगी व्यक्ति किसी भी तरह का सुख प्राप्त नहीं कर सकता हैं। रोगी व्यक्ति कोई भी कार्य करके ठीक से धन भी नहीं कमा सकता हैं। हमारा स्वस्थ शरीर ही सभी तरह के ज्ञान को प्राप्त कर सकता हैं। शरीर के नष्ट हो जाने पर संसार की सभी वस्तुएं बेकार हैं। यदि स्वस्थ शरीर है तो सभी प्रकार के सुखों का आनन्द लिया जा सकता हैं।
स्वस्थ रहने की कुंजी सम्पुर्ण चिकित्सा (वागभट्ट ज्ञषि) -राजीव दिक्षित जी
1.जीवन शैली व खान-पान में बदलाव से कई रोगों से मुक्ति पाई जा सकती हैं। घेरलू वस्तुओं के उपयोग से शरीर तो स्वस्थ रहेगा ही बीमारी पर होने वाला खर्च भी बचेगा।
2.फलों का रस, अत्याधिक तेल की चीजें, मट्ठा, खट्टी चीजें रात में नहीं खानी चाहिए।
3.घी या तेल की चीजें खाने के बाद तुरंत पानी नहीं पीना चाहिए बल्कि एक-डेढ़ घण्टे के बाद पानी पीना चाहिए।
4.भोजन के तुरंत बाद अधिक तेज चलना या दौड़ना हानिकारक ___ हैं। इसलिए कुछ देर आराम करके ही जाना चाहिए।
5.शाम को भोजन के बाद शुद्ध हवा में टहलना चाहिए खाने के तुरंत बाद सो जाने से पेट की गड़बड़ियाँ हो जाती हैं।
6.प्रातःकाल जल्दी उठना चाहिए और खुली हवा में व्यायाम या शरीर श्रम अवश्य करना चाहिए।
7.तेज धूप में चलने के बाद, शारीरिक मेहनत करने के बाद या शौच जाने के तुरंत बाद पानी कदापि नहीं पीना चाहिए।
8.केवल शहद और घी बराबर मात्रा में मिलाकर नहीं खाना चाहिएवह विष हो जाता हैं। » खाने पीने में विरोधी पदार्थों को एक साथ नहीं लेना चाहिए जैसे दूध और कटहल, दूध और दही, मछली और दूध आदि चीजें एक साथ नहीं लेनी चाहिए।
8.सिर पर कपड़ा बांधकर या मोजे पहनकर कभी नही सोनाचाहिए।
9.बहुत तेज या धीमी रोशनी में पढ़ना, अत्याधिक टीवी या सिनेमादेखना गर्म-ठंड़ी चीजों का सेवन करना, अधिक मिर्च मसालों का प्रयोग करना, तेज धूप में चलना इन सबसे बचना चाहिए। यदि तेज धूप में चलाना भी हो तो सर और कान पर कपड़ा बांधकर चलना चाहिए।
10.रोगी को हमेशा गर्म अथवा गुनगुना पानी ही पिलाना चाहिए और रोगी को ठंडी हवा, परिश्रम, तथा क्रोध से बचाना चाहिए। » कान में दर्द होने पर यदि पत्तों का रस कान में डालना हो तो सूर्योदय के पहले या सूर्यास्त के बाद ही डालना चाहिए।
11.आयुर्वेद में लिखा हैं कि निद्रा से पित्त शांत होता हैं, मालिश सेवाय कम होती हैं, उल्टी से कफ कम होता हैं और लंघन करने से बुखार शांत होता हैं। इसलिए घरेलू चिकित्सा करते समय इन बातों का अवश्य ध्यान रखना चाहिए। भाग या किसी गर्म चीज से जल जाने पर जले भाग को ठंडे पानी में डालकर रखना चाहिए।
12.किसी भी रोगी को तेल, घी या अधिक चिकने पदार्थों के सेवन से - बचना चाहिए।अजीर्ण तथा मंदाग्नि दूर करने वाली दवाएँ हमेशा भोजन के बाद ही लेनी चाहिए। > मल रुकने या कब्ज होने की स्थिति में यदि दस्त कराने हों तो प्रातःकाल ही कराने चाहिए, रात्रि में नहीं। » यदि घर में किशोरी या युवती को मिर्गी के दौरे पड़ते हों तो उसे उल्टी, दस्त या लंघन नहीं कराना चाहिए
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