गौ चिकित्सा -गोमूत्र दुग्ध के गुण ,गौघृत में मनुष्य
गौ चिकित्सा
देशी गाय घी के दिन रात काम आने वाले उपयोग हम यदि गोरस का बखान करते करते मर जाए तो भी कुछ अंग्रेजी सभ्यता वाले हमारी बात नहीं मानेंगे क्योंकि वे लोग तो हम लोगों को पिछड़ा, साम्प्रदायिक और गँवार जो समझते हैं। उनके लिए तो वही सही हैं जो पश्चिमी कहे तो हम उन्ही के वैज्ञानिक शिरोविच की गोरस पर खोज लाये हैं जो रुसी वैज्ञानिक हैं। गाय का घी और चावल की आहुति डालने से महत्वपूर्ण गैसे जैसे - एथिलीन ऑक्साइड, प्रोपिलीन
ऑक्साइड, फॉर्मल डीहाइड आदि उत्पन्न होती हैं। इथिलीन ऑक्साइड गैस आजकल सबसे अधिक प्रयुक्त होने वाली जीवाणुरोधक गैस हैं, जो शल्य-चिकित्सा से लेकर जीवनरक्षक औषधियाँ बनाने तक में उपयोगी हैं। वैज्ञानिक प्रोपिलीन ऑक्साइड गैस को कृत्रिम वर्षों का आधार मानते है
गौघृत में मनुष्य
शरीर में पहुँचे रोडियोधर्मी विकिरण का दुष्प्रभाव नष्ट करने की असीम क्षमता हैं। अग्नि में गाय का घी कि आहुति देने से उसका धुआँ जहाँ तक फैलता हैं, वहाँ तक का सारा वातावरण प्रदूषण और आण्विक विकरणों से मुक्त हो जाता हैं। सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह हैं कि एक चम्मच गौघृत को अग्नि में डालने से एक टन प्राण वायु (ऑक्सीजन) बनती हैं जो अन्य किसी भी उपाय से संभव नहीं हैं। देसी गाय के घी को रसायन कहा गया हैं। जो जवानी को कायम रखते हुए, बुढ़ापे को दूर रखता हैं। काली गाय का घी खाने से बूढ़ा व्यक्ति भी जवान जैसा हो जाता हैं। गाय के घी में स्वर्ण छार पाए जाते हैं जिसमें अद्भुत औषधीय गुण होते हैं, जो कि गाय के घी के अलावा अन्य घी में नही मिलते। गाय के घी में वैक्सीन एसिड़, ब्यूट्रिक एसिड़, बीटाकैरोटीन जैसे माइक्रोन्यूट्री मौजूद होते हैं। जिस के सेवन करने से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से बचा जा सकता हैं। गाय के घी से उत्पन्न शरीर के माइक्रोन्यूटी में कैंसर युक्त तत्वों से लड़ने की क्षमता होती हैं। यदि आप गाय के 10 ग्राम घी से हवन अनुष्ठान (यज्ञ) करते हैं तो इसके परिणाम स्वरूप वातावरण में लगभग 1 टन ताजा ऑक्सीजन का उत्पादन कर सकते हैं। यही कारण हैं कि मंदिरों में गाय के घी का दीपक जलाने कि तथा, धार्मिक समारोह में यज्ञ करने कि प्रथा प्रचलित हैं। इससे वातावरण में फैले परमाणु विकिरणों को हटाने की अद्भुत क्षमता होती हैं।
गोमूत्र दुग्ध के गुण →
गोमूत्र माने देशी गाय (जर्सी नहीं) के शरीर से निकला हुआ सीधा साधा मूत्र जिसे सती के आठ परत की कपड़ो से छान कर लिया गया हो।
1. गोमूत्र वात और कफ को अकेला ही नियंत्रित कर लेता हैं। पित्त के रोगों के लिए इसमें कुछ औषधियाँ मिलायी जाती हैं।
2.आधा कप देशी गाय का गोमूत्र सुबह पीने से दमा अस्थमा,ब्रोन्कियल अस्थमा सब ठीक होता हैं और गोमूत्र पीने से टीबी भी ठीक हो जाता हैं, लगातार पांच छह महीने पीना पड़ता हैं।
3. गोमूत्र में पानी के अलावा कैल्शियम, सल्फर की कमी से होता हैं। घुटने दुखना, खाँसी, जुकाम, टीबी के रोग आदि सब गोमूत्र के सेवन से ठीक हो जाते हैं क्योंकि यह सल्फर का भंडार हैं।
4. टीबी के लिए डोट्स का जो इलाज हैं, गोमूत्र के साथ उसका असर 20-40 गुणा तक बढ़ जाता हैं।
शरीर में एक रसायन होता हैं, इसकी कमी से कैंसर रोग होता हैं। जब इसकी कमी होती हैं तो शरीर के सेल बेकाबू हो जाते हैं और ट्यूमर का रूप ले लेते हैं। गोमूत्र और हल्दी में यह रसायन प्रचुर मात्रा में पाया जाता हैं।
5. आँख के रोग कफ से होते हैं। आँखों के कई गंभीर रोग हैं जैसे ग्लूकोमा (जिसका कोई इलाज नहीं हैं एलोपैथी में), मोतियाबिंदू आदि सब आँखों के रोग गोमूत्र से ठीक हो जाते हैं। ठीक होनेका मतलब कंट्रोल नहीं, जड़ से ठीक हो जाते हैं। आपको करना बस इतना हैं कि ताजे गोमूत्र को कपड़े से छानकर आँखों में डालना हैं।
6.बाल झड़ते हों तो ताम्बे के बर्तन में गाय के दूध से दही को 5-6 दिन के लिए रख दें। जब इसका रंग बदल जाए तो इसे सिर पर लगा कर 1 घंटे तक रखें। ऐसा सप्ताह में 4 बार कर सकते हैं। कई लोगों को तो एक ही बार से लाभ हो जाता हैं।
7. गाय के मूत्र में पानी मिलाकर बाल धोने से गजब की कंडशनिंग होती हैं।
-8.छोटे बच्चों को बहुत जल्दी सर्दी जुकाम हो जाता हैं। 1 चम्मच गो मूत्र पिला दीजिए सारी बलगम साफ हो जाएगी।
9. किडनी तथा मूत्र से संबन्धित कोई समस्या हो जैसे पेशाब रुक कर आना, लाल आना आदि तो आधा कप (50 मिली) गोमूत्र सुबह-सुबह खाली पेट पी लें। इसको दो बार पीएं यानी पहले आधा पीएं फिर कुछ मिनट बाद बाकी पी लें। कुछ ही दिनों में लाभ का अनुभव होगा।
10.बहुत कब्ज हो तो कुछ दिन तक आधा कप गोमूत्र पीने से कब्ज खत्म हो जाती हैं।
11. गोमूत्र की मालिश से त्वचा पर सफेद धब्बे और डार्कसर्कल कुछ ही दिनों में खत्म हो जाते हैं।
गोमूत्र को सुबह खाली पेट पीना सर्वोत्तम होता हैं। जो लोग बहुत बीमार हैं, उन्हें 100 मिली से अधिक सेवन नहीं करना चाहिए। यह TEA CUP का आधे से अधिक भाग होता हैं। इसे कुछ मिनट का अंतराल देकर दो किश्तों में पीना चाहिए। निरोगी व्यक्ति को 50 मिली से अधिक नहीं पीना चाहिए। गोमूत्र केवल उन्हीं गौमाता का पीएं जो चलती हों क्योंकि उन्हीं का मूत्र उपयोगी होता हैं। बैठी हुई गोमाता का मूत्र किसी काम का नहीं होता । जैसे - जर्सी गाय कभी नहीं घूमती और उसके मूत्र में केवल 3 ही पोषक तत्व पाए जाते हैं। वही देसी गाय के मूत्र में 18 पोषक तत्व पाये जाते हैं।
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